सौ वर्ष परिवर्तन हमें कहां ले जाएगा?
सौ वर्ष परिवर्तन के दौरान, सूचना प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी उच्च तकनीकों ने एशिया में उभरते उद्योगों के विकास को गति दी है, और वैश्विक आर्थिक विकास में चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अधिक मौके प्राप्त हुए हैं। विश्व अर्थतंत्र की प्रमुखता का एशिया में स्थानांतरण होने का रुझान अपरिहार्य है, और पश्चिम की पारंपरिक आधिपत्य में गिरावट की प्रवृत्ति भी अपरिवर्तनीय है। ऐसी परिस्थितियों में, अपने आधिपत्य को बनाए रखने के लिए अमेरिका उभरती अर्थव्यवस्थाओं को दबाने के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग कर रहा है, और पुरानी वैश्विक शासन प्रणाली को अभूतपूर्व दबाव का सामना करना पड़ेगा।
सौ वर्ष परिवर्तन की जड़ वैज्ञानिक और तकनीकी उत्पादकता के विकास और परिवर्तन में निहित है, और उच्च तकनीक का विकास मानव समाज को डिजिटल युग में लाएगा।
आर्थिक परिवर्तन अनिवार्य रूप से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेगा। नवाचार और आत्म-समायोजन की कमी के कारण, पश्चिमी देशों की राजनीतिक व्यवस्था आम तौर पर पतन के युग में गिर गई है। बड़े संकटों के सामने इन देशों की राजनीतिक व्यवस्थाओं की भिन्न-भिन्न कमजोरियां दिखने लगी हैं। पश्चिमी राजनीति की बहुमत मतदान की व्यवस्था, जो 18 वीं शताब्दी में उत्पन्न हुई, की गिरावट भी नजर आ रही है, जो उच्च तकनीक विकास के परिवर्तनों का सामना करने में असमर्थ है। नई सदी में आधुनिकीकरण से पहले लोकतंत्रीकरण की नीति अपनाने वाले अधिकांश देशों में आर्थिक ठहराव और सामाजिक अव्यवस्था दिखाई दी। विकासशील देशों के लिए पश्चिमी व्यवस्था का आकर्षण बहुत कम हो गया है। बहुत से विकासशील देशों, जो अभी भी अपने अस्तित्व अधिकार के लिए संघर्ष कर रहे हैं, के लिए लोकतंत्र रामबाण नहीं है। आम आदमियों को सुरक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और विभिन्न बुनियादी सार्वजनिक सेवाओं की अधिक आवश्यकता है।
बदलाव से निपटने का सबसे अच्छा तरीका हमेशा खुद को बदलना है। याहे वैश्विक शासन का तरीका या विभिन्न देशों की आंतरिक प्रणालियों में निरंतर परिवर्तन की आवश्यकता है। और दूसरों को एक निश्चित विचारधारा को स्वीकार करने के लिए मजबूर करने की आधिपत्यपूर्ण सोच भी विश्व प्रवृत्ति के खिलाफ होती है। पुरानी अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक, आर्थिक और वित्तीय प्रणालियाँ सुधार युग में प्रवेश करेंगी। चाहे वह संयुक्त राष्ट्र हो, विश्व व्यापार संगठन हो या अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, प्रभावी वैश्विक शासन के अनुकूल होने के लिए, उनमें भी सुधार लाया जाना चाहिये। जिनमें उभरते और विकासशील देशों को भी अधिक अधिकार प्राप्त होना चाहिये। उधर चीन बहुपक्षवाद, समतावाद और परामर्श लोकतंत्र पर डटा रहता है, और अधिक न्यायसंगत और उचित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की स्थापना के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है। इन प्रयासों का अधिकांश देशों द्वारा समर्थन किया गया है।
(साभार- चाइना मीडिया ग्रुप, पेइचिंग)
–आईएएनएस
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