कर्नाटक हाई कोर्ट ने पत्नी को अप्राकृतिक यौन संबंध के लिए मजबूर करने पर व्यक्ति के खिलाफ जांच के आदेश दिए
बेंगलुरु, 1 जून (आईएएनएस)। अपनी पत्नी को अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने वाले पति के मामले में औसत दर्जे की जांच के लिए कर्नाटक उच्च न्यायालय ने पुलिस को फटकार लगाते हुए मामले की जांच करने और अतिरिक्त चार्जशीट जमा करने का आदेश दिया है।
अदालत ने पुलिस को 2 महीने के भीतर अतिरिक्त चार्जशीट दाखिल करने का निर्देश दिया और निचली अदालत से मामले को आगे नहीं बढ़ाने को भी कहा है।
दहेज के आरोपों की जांच के लिए हाईकोर्ट ने पुलिस विभाग को फटकार लगाई है। पत्नी ने पति के खिलाफ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और पिता को अश्लील तस्वीरें भेजने की शिकायत दर्ज कराई थी।
न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने मंगलवार को यह आदेश दिया। पीठ ने आरोपी पति की याचिका पर विचार किया, जिसने अदालत से उसके खिलाफ दहेज की कार्यवाही को रद्द करने की अपील की थी। पत्नी ने एक याचिका और भी दायर की थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसकी शिकायत की ठीक से जांच नहीं की गई थी और इस संबंध में पुलिस को निर्देश देने की मांग की थी।
बेंगलुरु के आरोपी और छत्तीसगढ़ की पीड़ित पत्नी को 2013 में आईआईटी बॉम्बे में पढ़ते समय प्यार हो गया था। उन्होंने 2015 में पीएचडी की पढ़ाई के दौरान शादी कर ली थी।
वे शादी के बाद बेंगलुरु में रहने लगे थे। इसके तुरंत बाद पत्नी ने शिकायत की कि उसके पति ने अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर किया, जिसके बाद वह छत्तीसगढ़ में अपने माता-पिता के घर चली गई।
आरोपी द्वारा गलती न दोहराने का आश्वासन देने के बाद वह वापस आई। हालाँकि, उनके पति ने अपने तरीके नहीं बदले। फिर, वह 2016 में एक बार फिर अपने माता-पिता के घर गई।
उसने आरोप लगाया कि इस दौरान आरोपी ने उसके पिता को निजी फोटो और वीडियो भेजकर धमकी दी कि वह उन्हें वायरल कर देगा।
उसने उसके पिता के दोस्तों को तस्वीरें भी भेजीं। इसके बाद पीड़िता ने छत्तीसगढ़ में शिकायत दर्ज कराई।
रायपुर पुलिस ने आईपीसी की धारा 498ए (दहेज), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध), आईटी एक्ट की धारा 66 (ई), 67 के तहत शिकायत दर्ज की है। बाद में, उन्होंने मामले को बेंगलुरु के विवेकनगर पुलिस स्टेशन में स्थानांतरित कर दिया, जिसने केवल आरोपियों के खिलाफ दहेज के आरोपों की जांच की और आरोप पत्र प्रस्तुत किया।
मामले के संबंध में याचिकाएं लेने वाली अदालत ने कहा कि मामले की जांच करने वाली बेंगलुरु पुलिस ने पीड़िता द्वारा दायर की गई शिकायत और छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा दर्ज की गई शिकायत से आईपीसी की धारा 377 और आईटी अधिनियम के तहत दंडनीय आरोप हटा दिए हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि बेंगलुरू पुलिस द्वारा प्रस्तुत आरोप पत्र में पीड़िता के पिता के मोबाइल फोन के बारे में रिपोर्ट का उल्लेख नहीं है जिसे फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला को भेजा गया था।
जांच अधिकारी ने आईटी एक्ट की धारा 66(ई) और 67 की जांच के लिए आरोपी पति का फोन जब्त नहीं किया है। पीठ ने कहा कि यह पुलिस की औसत दर्जे की जांच को दशार्ता है।
–आईएएनएस
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