सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्यात पर खनन फर्म के एमडी के खिलाफ कार्यवाही की अनुमति दी


नई दिल्ली, 29 नवंबर (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केनरा ओवरसीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उनके और अन्य के खिलाफ कर्नाटक के बेलेकेरे बंदरगाह से 2009-10 में कथित तौर पर अवैध रूप से लौह अयस्क के निर्यात के लिए शुरू की गई आपराधिक कार्यवाही को चुनौती दी गई थी। अवैध निर्यात से सरकारी खजाने को 3.27 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।

जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, विक्रम नाथ और बी.वी. नागरत्ना की पीठ ने कहा, एमएमडीआर (माइन्स एंड मिनरल्स, डेवलपमेंट एंड रेगुलेशन) एक्ट की धारा 23 (1) में कहा गया है कि जहां किसी कंपनी द्वारा अपराध किया गया है, उस समय जो प्रभारी था और व्यवसाय के संचालन के लिए जिम्मेदार था, उसे अपराध का दोषी माना जाएगा।

प्रबंध निदेशक ने कर्नाटक उच्च न्यायालय के 12 नवंबर, 2020 के आदेश को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था, जिसने कार्यवाही को रद्द करने की उनकी याचिका को खारिज कर दिया।

अपीलकर्ता ने तर्क दिया कि उस पर एमएमडीआर अधिनियम के तहत अपराध का आरोप नहीं लगाया जा सकता और आरोपपत्र में भी उसे कोई भूमिका तय नहीं की गई है।

पीठ ने 81 पन्नों के फैसले में कहा, अपीलकर्ता की ओर से जो प्रस्तुतियां मांगी गई हैं, उन्हें स्वीकार नहीं किया जा सकता। एमएमडीआर अधिनियम की धारा 23 में निर्धारित शर्तो को पूरा किया गया है या नहीं, इसका निर्धारण एक जांच का मामला है। इसके अलावा, आरोपपत्र में यह स्पष्ट रूप से कहा गया है कि परिवहन के लिए भुगतान में ए-1 और ए-2 की भूमिका है। इसलिए ए-1 के खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला बनता है, जो उसे आरोपी के रूप में पेश करने के लिए पर्याप्त है।

पीठ ने कहा कि विशेष अदालत के पास एक विशिष्ट प्रावधान के अभाव में धारा 209 सीआरपीसी के तहत मजिस्ट्रेट द्वारा मामला दर्ज किए बिना एमएमडीआर अधिनियम के तहत किसी अपराध का संज्ञान लेने की शक्ति नहीं है।

अदालत ने कहा, विशेष न्यायाधीश का 30 दिसंबर 2015 का संज्ञान लेने का आदेश आया था, लेकिन अपीलकर्ता ने दो साल बाद संज्ञान आदेश को देरी का कारण बताए बिना चुनौती दी।

शीर्ष अदालत ने कहा, विशेष अदालत के पास एमएमडीआर अधिनियम के तहत अपराधों का संज्ञान लेने और अन्य अपराधों के साथ संयुक्त परीक्षण करने की शक्ति है, यदि धारा 220 सीआरपीसी के तहत अनुमति है। एमएमडीआर अधिनियम में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है जो इंगित करता है कि धारा 220 सीआरपीसी एमएमडीआर अधिनियम के तहत कार्यवाही पर लागू नहीं होता।

पीठ ने कहा कि संज्ञान आदेश इंगित करता है कि विशेष न्यायाधीश ने सभी प्रासंगिक सामग्री का अध्ययन किया है। आदेश के रूप में परिवर्तन इसके प्रभाव को नहीं बदलेगा। इसलिए धारा 465 सीआरपीसी के तहत कोई न्याय की विफलता साबित नहीं होती है। इस प्रकार यह अनियमितता कार्यवाही को प्रभावित नहीं करेगी।

–आईएएनएस

एसजीके/एएनएम

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